भगवान जगन्नाथ मंदिर कहाँ है? किसने बनवाया? जानें पूरा इतिहास

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हिंदू धर्म के चार धामों में से एक, भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत की आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है। यह भव्य मंदिर अपनी विशालता, अनूठी वास्तुकला और वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। लेकिन जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किसने करवाया और यह पवित्र स्थल आखिर Bhagwan Jagannath Mandir Kahan Hai एवं किसकी पूजा की जाती है, यह जानने के लिए हमें ओडिशा राज्य के समुद्र तट पर बसे तीर्थनगर पुरी जाना होगा। 

ऐसा माना जाता है कि पूर्वी गंग राजवंश के राजा अनंतवर्मन चोडगंग ने 10वीं शताब्दी में वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। हालांकि, पुराणों में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख कलियुग के आरंभ से जुड़ा हुआ मिलता है। 

भारत के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर - रहस्यमय स्थान की खोज

मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हैं भगवान जगन्नाथ, जो भगवान विष्णु के ही एक अवतार हैं। उनके साथ उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र की भी पूजा की जाती है। इन तीनों देवताओं की प्रतिमाएं चतुर्भुज वाली हैं, जिनका निर्माण नीम की लकड़ी से किया गया है। इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष प्राप्ति का विश्वास किया जाता है।इसके पीछे की कहानी चकित कर देने वाली जो आप आगे की पोस्ट में जानेगे। इस मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यंत व्यापक है और यह भारत के आध्यात्मिक धरोहर का प्रमुख हिस्सा है।

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

Jagannath Mandir Kahan Hai: भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थित जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा, एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का प्रतीक है। यहां भगवान जगन्नाथ, जिन्हें भगवान विष्णु के अवतार माना जाता है, और उनके सहायक देवताओं बलभद्र और सुभद्रा की पूजा की जाती है।

जगन्नाथ मंदिर का निर्माण वैदिक काल में हुआ था, जिसकी शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न द्वारा की गई थी। इसका निर्माण तब हुआ था जब भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर की मूर्ति की मांग की थी। उन्होंने भी शर्त रखी थी कि मूर्ति को केवल एक बार अधूरा देखा जा सकता है।

प्राचीन कथाएँ और ऐतिहासिक महत्व

जगन्नाथ मंदिर का इतिहास अनेक प्राचीन कथाओं से जुड़ा हुआ है। एक प्रमुख कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान के विश्ववसु द्वारा गुप्त रूप से रखी गई मूर्ति को खोजने और मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके अलावा, मंदिर का निर्माण में विश्वकर्मा द्वारा बनाई गई मूर्तियों की कथा भी प्रसिद्ध है।

कथा 1: एक बार भगवान कृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ वनवास में थे। एक राक्षस ने उन पर हमला किया, जिससे बचने के लिए भगवान कृष्ण ने लकड़ी का एक टुकड़ा लिया और उसमें अपनी आत्मा स्थापित कर दी। बाद में, राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान की मूर्ति को खोज निकाला और एक मंदिर का निर्माण करवाया।

कथा 2: इस मंदिर की और एक प्रमुख कथा है जो बताती है कि भगवान जगन्नाथ चारों धामों की यात्रा पर जाते समय हिमालय की ऊंची चोटियों पर बसे अपने धाम बद्रीनाथ में स्नान करते हैं। पश्चिम में गुजरात के द्वारिका में वस्त्र पहनते हैं। पुरी में भोजन करते हैं और दक्षिण में रामेश्‍वरम में विश्राम करते हैं। इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने पुरी में निवास करने लगे और उन्होंने इस स्थान पर अपने धाम का गठन किया, जिसे जगन्नाथ धाम कहा जाता है।

कथा 3: स्थानीय मान्यता है कि कई वर्ष पूर्व नीलांचल पर्वत पर स्वयं भगवान नीलमाधव (जगन्नाथ) निवास करते थे। एक रात राजा इंद्रद्युम्न को भगवान विष्णु ने सपने में दर्शन दिए और उन्हें बताया कि नीलांचल पर्वत की एक गुफा में उनकी एक प्रतिमा है, जिसे नीलमाधव कहते हैं। प्रभु ने कहा, "तुम एक मंदिर बनवाओ और उसमें मेरी यह मूर्ति स्थापित कर दो।"

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जगन्नाथ पुरी के 10 रहस्य: एक अनोखी परंपरा की कहानी

जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा, भारत का एक ऐतिहासिक स्थल है जहां भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियां विराजमान हैं। इन मूर्तियों की विशेषता यह है कि इन्हें हर 12 साल बाद बदला जाता है, और इस समय मंदिर के आस-पास पूरा अंधेरा होता है। इस समय मंदिर की सुरक्षा में सीआरपीएफ के जवान तैनात किए जाते हैं, और केवल एक पुजारी को ही मूर्तियों को बदलने की अनुमति होती है। पुजारी के हाथ में दस्ताने होते हैं और उनकी आंखों पर पट्टी बांधी जाती है ताकि वे बदलते समय मूर्तियों को देखने से बच सकें।

भगवान श्रीकृष्ण का हृदय: एक अनमोल रहस्य

मान्यता है कि जब पुरानी मूर्ति से नई मूर्ति बदली जाती है, तो पुरानी मूर्ति से एक ब्रह्म पदार्थ निकाला जाता है, जिसे भगवान श्रीकृष्ण का हृदय माना जाता है। इस ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्ति में रखने से माना जाता है कि उसके दर्शन से जीवन की मुक्ति प्राप्ति होती है।

मंदिर का आर्किटेक्चर: एक अनुपम शैली

जगन्नाथ पुरी मंदिर का आर्किटेक्चर समुद्र के किनारे होने के कारण बेहद अद्वितीय है। मंदिर के सिंहद्वार में प्रवेश करते ही लहरों की आवाज सुनाई देना बंद हो जाती है, जो मंदिर के भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव प्रदान करती है।

सुदर्शन चक्र का रहस्य: अद्वितीय दृष्टिकोण

मंदिर के शिखर पर स्थापित सुदर्शन चक्र को कहीं से भी देखने पर हमेशा सीधा दिखाई देता है। यह अनोखी विशेषता उसको बनाती है कि यह हमेशा उस दिशा में होता है जिसमें देखने वाले को उसकी योग्यता और शक्ति का एहसास कराता है।

झंडा का रहस्य: अनुपम शक्ति

मंदिर पर लगे झंडे का बदलना न केवल एक परंपरा है, बल्कि इसमें विशेष अर्थ और शक्ति है। यह झंडा हमेशा हवा के विपरीत दिशा में लहराता है और इसके बदलने का माना जाता है कि इसे न करने पर मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो सकता है।

शिखर की अनुपस्थिति: अद्वितीय रहस्य

जगन्नाथ पुरी मंदिर के शिखर पर कभी भी सूर्य या चांद की रोशनी में परछाईं नहीं बनती हैं। यह अज्ञात शक्तियों की एक प्रमाणित और रहस्यमयी विशेषता है जो इस स्थान को अनूठा बनाती है।

पक्षियों की अनुपस्थिति: अद्वितीय विचार

मंदिर के शिखर पर कभी भी पक्षी नहीं बैठते हैं, यह भी एक अद्वितीय रहस्य है जो इस स्थल को अलग बनाता है। यहां उपस्थित अज्ञात शक्तियों का अनुभव करने के लिए इस रहस्य को समझना महत्वपूर्ण है।

रसोई का अनुपम रहस्य: दिव्य प्रसाद

मंदिर के भीतर स्थित रसोई में रोजाना भगवान के प्रसाद को बनाने के लिए मिट्टी के सात बर्तन एक के ऊपर एक रखकर प्रसाद पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद सबसे पहले पकता है, जो ब्रह्माण्ड का एक अनुपम दिव्य प्रसाद माना जाता हैं। इस प्रसाद का विशेष होने के कारण, इसे विशेष श्रद्धा से खाया जाता है।

कथा का अनुपम रहस्य: अद्वितीय प्राचीनता

जगन्नाथ पुरी मंदिर के बारे में कई कथाएँ हैं जो इसकी अनूठी प्राचीनता को दर्शाती हैं। इन कथाओं में से कुछ का जिक्र हमारे शास्त्रों में भी होता है और इन्हें सुनकर हमें अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के प्रति और अधिक गहरी श्रद्धा होती है।

मुख्य प्रस्थान: अनुपम स्थिति

जगन्नाथ पुरी मंदिर को मुख्य प्रस्थान के रूप में जाना जाता है, जहां देवों के दर्शन करने वाले को अपने जीवन की मुक्ति प्राप्त होती है। इसे प्रस्थान स्थान के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहां का दर्शन और सेवा अनूठे अनुभव को देता है जो अन्य कहीं नहीं पाया जा सकता।

जगन्नाथ रथ यात्रा: की जानकारी

कब निकलती है:

  • जगन्नाथ रथ यात्रा को हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि को निकाली जाती है।
  • यह आमतौर पर जून या जुलाई के महीने में होती है।
  • 2024 में, यह रथ यात्रा 7 जुलाई को निकली थी।

क्यों निकलती है:

  • रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की माउसी गुंडिचा के घर जाने का प्रतीक है।
  • यह यात्रा भगवान कृष्ण के जीवन की लीलाओं का भी प्रतीक है, विशेष रूप से जब वे वृंदावन से मथुरा गए थे।

कब शुरू हुई:

  • जगन्नाथ रथ यात्रा की सटीक उत्पत्ति अज्ञात है, लेकिन माना जाता है कि यह 12वीं या 16वीं शताब्दी से पहले की है।
  • कुछ लोग मानते हैं कि इसकी शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न ने की थी, जिन्होंने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति स्थापित की थी।
  • अन्य लोग मानते हैं कि यह त्योहार भगवान कृष्ण के समय से ही मनाया जा रहा है।

रथ यात्रा का महत्व:

  • जगन्नाथ रथ यात्रा हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है।
  • यह भक्ति, प्रेम और एकता का प्रतीक है।
  • लाखों लोग हर साल इस यात्रा में भाग लेने के लिए पुरी आते हैं।

रथ यात्रा का उत्सव:

  • रथ यात्रा एक भव्य उत्सव है।
  • भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की विशाल मूर्तियों को रथों में रखा जाता है और शहर की सड़कों पर खींचा जाता है।
  • भक्त जयकारे लगाते हैं, नृत्य करते हैं और गाते हैं।
  • यह एक जीवंत और रंगीन त्योहार है जो आशा और खुशी का माहौल पैदा करता है।

रथ यात्रा के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • यह रथ यात्रा विश्व की सबसे बड़ी रथ यात्रा उत्सव है।
  • रथ लकड़ी से बने होते हैं और इन्हें हर साल नया बनाया जाता है।
  • रथों को रंगीन कपड़े, फूल और ध्वज से सजाया जाता है।
  • यह रथ यात्रा उडीसा राज्य में बड़े धूम धाम से 9 दिन तक चलती है।
  • रथ यात्रा का समापन नवमी तिथि को होता है, जब भगवान जगन्नाथ मौसी के घर से वापस मंदिर लौटते हैं।

जगन्नाथ मंदिर कहां स्थित है

जगन्नाथ मंदिर भारत के ओडिशा राज्य में पुरी शहर में स्थित है। यह पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित एक प्रमुख धार्मिक और पर्यटन स्थल है। जगन्नाथ मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है और इसे भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को समर्पित किया गया है। यह मंदिर अपनी भव्यता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है और लाखों श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करता है।

मंदिर की भव्यता और धार्मिक महत्त्व

जगन्नाथ मंदिर अपनी भव्यता और धार्मिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर विशाल परिसर, शानदार वास्तुकला और धार्मिक आयोजनों के लिए जाना जाता है। मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में किया गया था और इसकी ऊंचाई 214 फीट है। मंदिर के मुख्य शिखर पर नीलचक्र स्थापित है, जो भगवान विष्णु का प्रतीक है।

यात्रा और सुविधाएं

पुरी शहर में पहुंचने के लिए हवाई, रेल और सड़क मार्ग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। भुवनेश्वर हवाई अड्डा सबसे निकटतम हवाई अड्डा है, जो पुरी से लगभग 60 किलोमीटर दूर है। पुरी रेलवे स्टेशन भी देश के विभिन्न हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। शहर में ठहरने के लिए कई होटेल्स, धर्मशालाएं और लॉज उपलब्ध हैं।

जगन्नाथ पुरी कब जाना चाहिए

जगन्नाथ पुरी जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी तक होता है। इस समय मौसम ठंडा और सुखद रहता है, जो यात्रा के लिए अनुकूल होता है। इसके अलावा, जून-जुलाई में जगन्नाथ रथ यात्रा के समय भी काफी भक्तगण यहाँ आते हैं।

यहां कुछ मुख्य बातें हैं जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए:

  1. अक्टूबर से फरवरी (सर्दियों का मौसम): मौसम ठंडा और सुखद होता है, जो समुद्र तट पर समय बिताने और मंदिर के दर्शन के लिए उपयुक्त है।
  2. जून-जुलाई (रथ यात्रा का समय): यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है और इस दौरान भारी भीड़ होती है। अगर आप भीड़ और भक्ति माहौल का अनुभव करना चाहते हैं, तो यह समय अच्छा हो सकता है।

यात्रा की योजना बनाते समय मौसम और त्योहारों के समय को ध्यान में रखकर अपनी यात्रा तय करें।

जगन्नाथ मंदिर का समय:

समय कार्यक्रम विवरण
सुबह - -
5:30 ए.एम. - 6:15 ए.एम. मंगला आरती भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की सुबह की आरती।
6:15 ए.एम. - 7:30 ए.एम. बाला धूप भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को चंदन लगाना।
8:30 ए.एम. - 11:00 ए.एम. भोग मंडप पूजा भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को भोग अर्पित करना।
11:00 ए.एम. - 1:30 पी.एम. मध्यान्ह भोग भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को भोजन कराना।
दोपहर (2:00 PM - 5:30 PM) मध्यान्ह विश्राम मध्यान्ह धूप से संध्या आरती की समाप्ति तक भितर काठ / जगमोहन के पास दर्शन उपलब्ध रहता है।
शाम - -
4:00 पी.एम. - 5:00 पी.एम. संध्या आरती भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की शाम की आरती।
8:00 पी.एम. - 9:00 पी.एम. शयन आरती भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को सोने के लिए तैयार करना।

जगन्नाथ पुरी से कोणार्क मंदिर की दूरी

जगन्नाथ पुरी से कोणार्क मंदिर की दूरी लगभग 35 किलोमीटर (यानी लगभग 22 मील) है। इस दूरी को कार या बस में यात्रा करते हुए लगभग एक घंटे का समय लग सकता है, जबकि रेल यातायात में यह समय कुछ कम हो सकता है।

कोणार्क मंदिर, जो रथ कहलाता है, ओडिशा के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह एक प्राचीन सूर्य मंदिर है जिसे उन्नीसवीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर का निर्माण संघमर्ष से पहले हुआ था और इसकी विशेषता उसके दक्षिण की ओर खुलने वाली तारों की अवधारणा है, जो सूर्य के उदय और अस्त होने की संकेत देती हैं।
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जगन्नाथ पुरी मंदिर FAQ:

1. जगन्नाथ मंदिर में किसकी पूजा की जाती है?

जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र, और देवी सुभद्रा की पूजा और अर्चना विधिवत रूप से की जाती है। इनके लिए विभिन्न प्रकार की आरती, भोग, और परंपरागत रूप से कार्यक्रम होते हैं जो प्रतिदिन अनुसंधान किया जाता है।

2. पुरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर की दूरी?

पुरी रेलवे स्टेशन से जगन्नाथ मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है। यह दूरी पैदल चलने में लगभग 20-25 मिनट की होती है।

3. जगन्नाथ मंदिर का दूसरा नाम क्या है?

जगन्नाथ मंदिर को 'नील माधव मंदिर भी कहा जाता है। इसका नाम इसलिए है क्योंकि यह मंदिर भगवान जगन्नाथ की प्रमुख प्रतिष्ठा स्थली है और उनके श्रीचरण का महत्वपूर्ण केंद्र है।

निष्कर्ष

जगन्नाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, अपितु यह भारत की समृद्ध संस्कृति और आध्यात्मिक परंपराओं का एक जीवंत प्रतीक है। इसकी वास्तुकला, कलाकृतियाँ, और वार्षिक रथ यात्रा उत्सव, सभी सदियों पुरानी परंपराओं का उत्सव हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में आपने भगवान जगन्नाथ मंदिर कहां स्थित है के बारे में सभी विस्तृत जानकारी को जाना है।  

अब इस ब्लॉग पोस्ट को शेयर करें और अपने विचार साझा करके आप भी इस महान मंदिर के महत्व को और बढ़ा सकते हैं। इसके साथ ही, आप सभी को इस ब्लॉग पोस्ट पर अपने विचार कमेन्ट में जरुर देना चाहिए। 
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