
एक रुपये और अन्य सिक्कों की निर्माण लागत
भारत में सिक्कों का निर्माण भारत सरकार की टकसालों (Indian Government Mint) में होता है, जो मुख्य रूप से मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, और नोएडा में स्थित हैं। एक RTI (Right to Information) के जवाब में भारतीय रिजर्व बैंक ने खुलासा किया कि एक रुपये का सिक्का बनाने की लागत 1.11 रुपये है। यानी, सरकार को हर सिक्के पर 11 पैसे का घाटा होता है।
यहां अन्य सिक्कों की निर्माण लागत भी देखिए:
- 2 रुपये का सिक्का: 1.28 रुपये
- 5 रुपये का सिक्का: 3.69 रुपये
- 10 रुपये का सिक्का: 5.54 रुपये
ये आंकड़े 2018 के हैं, और हाल के वर्षों में कच्चे माल (जैसे स्टेनलेस स्टील) की कीमतों में वृद्धि के कारण लागत में मामूली बदलाव हो सकता है। फिर भी, यह साफ है कि सिक्कों का निर्माण सरकार के लिए घाटे का सौदा है।
सिक्के कैसे बनते हैं? भारतीय टकसालों की भूमिका
भारत में सिक्कों का निर्माण एक जटिल और तकनीकी प्रक्रिया है, जो निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है:
- कच्चा माल: एक रुपये का सिक्का स्टेनलेस स्टील से बनता है, जिसमें लोहा और क्रोमियम का मिश्रण होता है। इसका वजन 3.76 ग्राम, व्यास 21.93 मिमी, और मोटाई 1.45 मिमी होती है।
- डिज़ाइन और ढलाई: सिक्कों का डिज़ाइन भारत सरकार और RBI द्वारा अनुमोदित होता है। इसके बाद, टकसालों में विशेष मशीनों द्वारा सिक्कों को ढाला जाता है।
- गुणवत्ता जांच: प्रत्येक सिक्के की गुणवत्ता की जांच होती है ताकि यह सुनिश्चित हो कि वह निर्धारित मानकों को पूरा करता है।
- वितरण: तैयार सिक्के RBI के माध्यम से बैंकों और जनता तक पहुंचाए जाते हैं।
मुंबई और हैदराबाद की टकसालें सबसे अधिक सिक्कों का उत्पादन करती हैं। 2016-17 में भारत में 2201 मिलियन सिक्के बनाए गए थे, लेकिन हाल के वर्षों में यह संख्या घटकर 630 मिलियन (2024 तक) हो गई है।
भारतीय मुद्रा का निर्माण कौन करता है?
यह जानना भी ज़रूरी है कि हमारे देश में सिक्के और नोट कौन बनाता है. इसकी जिम्मेदारी अलग-अलग संस्थाओं पर है:
- सिक्के: भारत में सिक्के भारत सरकार की टकसालों (Indian Government Mints) में ढाले जाते हैं. ये टकसालें प्रमुख रूप से मुंबई और हैदराबाद में स्थित हैं, जहाँ सभी मूल्य के सिक्के बनाए जाते हैं.
- नोट: ₹2 से लेकर ₹500 तक के नोटों की छपाई की जिम्मेदारी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की होती है. RBI अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी, भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL) के ज़रिए इन नोटों को छापती है.
- एक रुपये का नोट: एक रुपये का नोट और सभी सिक्के भारत सरकार द्वारा ही जारी किए जाते हैं, हालांकि इसका प्रचलन आरबीआई के माध्यम से होता है.
- SPMCIL भारत सरकार के अधीन एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है जो सिक्कों की ढलाई और नोटों की छपाई का काम करता है.
- भारतीय सरकारी टकसालों की वेबसाइट (Security Printing and Minting Corporation of India Limited - SPMCIL):SPMCIL की आधिकारिक वेबसाइट
अपनी वित्तीय जानकारी को और बढ़ाएँ!
- क्या आप जानते हैं कि पेमेंट बैंक से UPI के ज़रिए पैसे कैसे कमाएँ? यह रहा पूरा तरीका!
- Jio Payment Bank से ऑनलाइन शॉपिंग कैसे करें? यहां जानें सभी गुप्त टिप्स और ट्रिक्स!
- भारत में सैलरी बचाने की सबसे शानदार स्कीम कौन सी है? जानने के लिए तुरंत क्लिक करें!
- क्या आप भी डिजिटल वॉलेट से पैसे कमाना चाहते हैं? यहाँ जानें सबसे आसान तरीके!
- अगर आप अपनी कमाई बढ़ाना चाहते हैं, तो पेमेंट बैंक सर्विसेज़ से कमाई के ये तरीके ज़रूर देखें!
नोट छपाई की लागत: सिक्कों से तुलना
सिक्कों की तुलना में नोटों की छपाई सरकार के लिए अधिक लाभदायक है। भारतीय रिजर्व बैंक की सहायक कंपनी, भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड, 2 रुपये से 500 रुपये तक के नोट छापती है। नोट छपाई की लागत इस प्रकार है:
नोट का मूल्य | 1000 नोटों की छपाई लागत | प्रति नोट लागत (अनुमानित) |
---|---|---|
₹10 | ₹960 | ₹0.96 |
₹100 | ₹1770 | ₹1.77 |
₹200 | ₹2370 | ₹2.37 |
₹500 | ₹2290 | ₹2.29 |
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि बड़े मूल्य के नोटों की छपाई लागत उनके अंकित मूल्य के मुकाबले बहुत कम होती है. उदाहरण के लिए, एक ₹500 का नोट छापने में सिर्फ ₹2.29 का खर्च आता है, जबकि उसका मूल्य ₹500 होता है. इससे सरकार को काफी लाभ होता है.
घाटे के बावजूद सिक्के क्यों बनाए जाते हैं?
आप सोच रहे होंगे कि अगर सिक्के बनाने में घाटा होता है, तो सरकार इन्हें क्यों बनाती है? इसके कई कारण हैं:
- मुद्रा प्रणाली की स्थिरता: सिक्के लंबे समय तक चलते हैं (20-30 वर्ष), जबकि नोटों को हर कुछ वर्षों में बदलना पड़ता है।
- सांस्कृतिक महत्व: एक रुपये का सिक्का भारतीय घरों में भावनात्मक और सांस्कृतिक मूल्य रखता है।
- छोटे लेन-देन: छोटे-मोटे लेन-देन में सिक्के अभी भी महत्वपूर्ण हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- रणनीतिक निर्णय: सिक्कों का उत्पादन केवल लागत पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह मुद्रा प्रणाली की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जरूरी है।
सिक्कों की लागत में बदलाव के कारण: महंगाई और धातु के दाम
आप सोच रहे होंगे कि सिक्कों की निर्माण लागत हमेशा एक जैसी क्यों नहीं रहती. दरअसल, इसमें कई कारक भूमिका निभाते हैं, जिनमें महंगाई (Inflation) और धातुओं की कीमतें (Metal Prices) प्रमुख हैं:
- महंगाई का सीधा असर: समय के साथ उत्पादन की कुल लागत बढ़ती जाती है. मशीनरी के रखरखाव, कर्मचारियों के वेतन, परिवहन और ऊर्जा जैसे खर्चे हर साल बढ़ते हैं, जिसका सीधा असर सिक्के बनाने की लागत पर पड़ता है. यही वजह है कि 2013 और 2024 में एक ही सिक्के की लागत में फर्क हो सकता है.
- धातुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें: सिक्के बनाने में उपयोग होने वाली धातुएँ, जैसे स्टेनलेस स्टील, निकल और तांबा, अंतर्राष्ट्रीय कमोडिटी बाज़ारों में खरीदी जाती हैं. इन धातुओं की कीमतें वैश्विक मांग और आपूर्ति, भू-राजनीतिक घटनाओं और आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर लगातार बदलती रहती हैं. यदि इन धातुओं के दाम बढ़ते हैं, तो सिक्के बनाने की लागत भी बढ़ जाती है.
- तकनीकी उन्नति और दक्षता: समय के साथ, टकसालों में नई तकनीकें और अधिक कुशल उत्पादन प्रक्रियाएँ अपनाई जाती हैं. ये सुधार प्रति सिक्के की लागत को कम करने में मदद कर सकते हैं, भले ही कच्चे माल की कीमतें स्थिर रहें.
बैंकिंग और सरकारी योजनाओं से जुड़ी ज़रूरी जानकारी
- अपना इनपुट सब्सिडी पेमेंट स्टेटस 2024 चेक करना है? बस एक क्लिक में जानें पूरी डिटेल!
- ई-रुपी ऐप डाउनलोड करना चाहते हैं? यहां मिलेगा सीधा लिंक और पूरी जानकारी!
- Paytm Payment Bank से पैसे ट्रांसफर कैसे करें? स्टेप-बाय-स्टेप गाइड के लिए अभी देखें!
- मोबाइल नंबर से बैंक अकाउंट नंबर कैसे पता करें? यह आसान तरीका आपकी खोज खत्म कर देगा!
- Airtel Payment Bank के फायदे क्या हैं? यहां जानें वो सारी बातें जो आपको पता होनी चाहिए!
पुराने और नए सिक्कों की लागत में अंतर और बदलाव के कारण
भारतीय सिक्कों का इतिहास रहा है जिसमें समय-समय पर उनकी सामग्री और डिज़ाइन में बदलाव किए गए हैं. इन बदलावों का सीधा संबंध उनकी निर्माण लागत से भी रहा है:
- सामग्री का विकास: शुरुआती दौर में, सिक्के चांदी या तांबे जैसी महंगी धातुओं से बनते थे. फिर एल्युमिनियम और कॉपर-निकल जैसी अपेक्षाकृत सस्ती धातुओं का उपयोग किया जाने लगा. अब, अधिकांश सिक्के स्टेनलेस स्टील से बनाए जाते हैं, जो न केवल सस्ता है बल्कि जंग प्रतिरोधी और टिकाऊ भी है. यह बदलाव सीधे तौर पर लागत कम करने और सिक्कों के जीवनकाल को बढ़ाने के लिए किया गया है.
- लागत प्रबंधन: जब किसी धातु की कीमत बहुत ज़्यादा बढ़ जाती है, तो सरकार को लागत कम करने के लिए वैकल्पिक धातुओं का उपयोग करना पड़ता है. उदाहरण के लिए, एक रुपये के सिक्के में इस्तेमाल होने वाली धातुओं में कई बार बदलाव हुए हैं ताकि उसकी लागत को नियंत्रित किया जा सके.
- सुरक्षा और नकली सिक्के: समय के साथ, सिक्कों को नकली बनाने से रोकने के लिए उनमें नई सुरक्षा सुविधाएँ जोड़ी जाती हैं. ये सुविधाएँ कभी-कभी उत्पादन लागत को थोड़ा बढ़ा सकती हैं, लेकिन लंबे समय में ये नकली मुद्रा से होने वाले बड़े आर्थिक नुकसान से बचाती हैं.
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य: अन्य देशों में सिक्कों की लागत
यह केवल भारत की ही कहानी नहीं है; दुनिया भर की कई सरकारें छोटे मूल्य के सिक्कों के निर्माण की लागत को लेकर चुनौतियों का सामना करती हैं. एक नज़र डालते हैं कुछ अन्य देशों पर:
- संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिकी पेनी (1 सेंट) को बनाने में अक्सर 2 सेंट से अधिक का खर्च आता है, और निकल (5 सेंट) को बनाने में भी इसके अंकित मूल्य से अधिक लगता है. यह एक विश्वव्यापी प्रवृत्ति है जहाँ सबसे छोटे मूल्य के सिक्कों का उत्पादन घाटे का सौदा हो सकता है.
- यूनाइटेड किंगडम: यूके के 1p और 2p के सिक्कों की लागत भी अक्सर उनके मूल्य से ज़्यादा होती है.
- यूरोपीय संघ: यूरो जोन के कुछ छोटे सेंट सिक्कों के साथ भी ऐसी ही स्थिति है.
यह दर्शाता है कि भारत अकेला ऐसा देश नहीं है जहाँ छोटे सिक्कों पर घाटा होता है. श्रम लागत, धातु की उपलब्धता, उत्पादन क्षमता और मुद्रास्फीति जैसे कारक हर देश में सिक्कों की लागत को प्रभावित करते हैं. वैश्विक स्तर पर, सरकारें स्थायित्व और उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ऐसे सिक्कों का उत्पादन जारी रखती हैं, भले ही उनकी सीधी लागत अधिक हो.
सिक्कों की लागत कम करने के लिए सरकार के प्रयास
सरकारें इस घाटे को कम करने और मुद्रा निर्माण को अधिक कुशल बनाने के लिए लगातार प्रयास करती रहती हैं:
- कम लागत वाली धातुओं का उपयोग: जैसा कि हमने देखा, स्टेनलेस स्टील जैसे सस्ते और टिकाऊ मिश्र धातुओं पर स्विच करना लागत कम करने का एक प्रभावी तरीका है.
- उत्पादन में दक्षता: भारतीय टकसालें अपनी उत्पादन प्रक्रियाओं को लगातार उन्नत करती रहती हैं ताकि कम संसाधनों में अधिक सिक्के बनाए जा सकें. बड़े पैमाने पर उत्पादन (mass production) प्रति इकाई लागत को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
- सिक्कों का पुनर्चक्रण (Recycling): पुराने या खराब हो चुके सिक्कों को पिघलाकर नए सिक्के बनाने से भी कच्चे माल की लागत कम हो सकती है, हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है.
- मुद्रास्फीति नियंत्रण: सरकार की आर्थिक नीतियाँ जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करती हैं, अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा निर्माण लागत को भी स्थिर रखने में मदद करती हैं.
क्या सिक्कों का भविष्य है? डिजिटल युग में उनकी प्रासंगिकता
आज के डिजिटल युग (Digital Age) में, जहाँ UPI, मोबाइल वॉलेट और ऑनलाइन बैंकिंग का बोलबाला है, एक सवाल अक्सर उठता है: क्या सिक्कों का भविष्य है?
डिजिटल भुगतान का उदय: द्रष्टि IAS के अनुसार भारत में डिजिटल लेनदेन में तेजी से वृद्धि हुई है, खासकर शहरी क्षेत्रों में. छोटे से छोटे भुगतानों के लिए भी अब लोग नकदी के बजाय डिजिटल तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं.
फिर भी प्रासंगिक: इसके बावजूद, सिक्कों की अपनी एक अलग प्रासंगिकता बनी हुई है:
- ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्र: भारत के कई ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल पहुँच सीमित है, नकद और सिक्कों का उपयोग अभी भी व्यापक है.
- छोटे वेंडर और लेन-देन: सब्जी विक्रेता, छोटे दुकानदार, और सार्वजनिक परिवहन जैसे क्षेत्रों में सिक्के अभी भी महत्वपूर्ण हैं.
- नेटवर्क की समस्या: बिजली या इंटरनेट की अनुपलब्धता के मामलों में, सिक्के ही लेनदेन का एकमात्र विश्वसनीय माध्यम होते हैं.
- टिकाऊपन: नोटों के विपरीत, सिक्के पानी या गंदगी से आसानी से खराब नहीं होते, जो उन्हें कुछ परिस्थितियों के लिए आदर्श बनाता है.
यह कहना जल्दबाजी होगी कि सिक्के कभी पूरी तरह से गायब हो जाएंगे. हो सकता है कि उनका उपयोग करने का तरीका और आवृत्ति बदल जाए, लेकिन वे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक आवश्यक और टिकाऊ माध्यम बने रहेंगे, खासकर छोटे मूल्यों के लेनदेन के लिए.
भारतीय सिक्कों का इतिहास: एक झलक
भारतीय सिक्कों का इतिहास 2500 साल से भी पुराना है। शेर शाह सूरी ने 1542 में रूपिया नामक चांदी का सिक्का पेश किया, जो आधुनिक रुपये का आधार बना। स्वतंत्र भारत में 1950 में पहला एक रुपये का सिक्का जारी हुआ। समय के साथ सिक्कों के डिज़ाइन और सामग्री में बदलाव आया:
- 1950-1992: सिक्के निकल और तांबे से बनते थे।
- 1992 के बाद: स्टेनलेस स्टील का उपयोग शुरू हुआ, जो सस्ता और टिकाऊ है।
- 2025 में: कुछ सिक्कों में पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का परीक्षण हो रहा है।
यह इतिहास न केवल सिक्कों की लागत को समझने में मदद करता है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्ता को भी दर्शाता है।
ये भी पढ़ें
- क्या आप जानते हैं अंबेडकर वसाती योजना के बारे में? पात्रता और आवेदन प्रक्रिया जानें!
- India Post Payment Bank का IFSC कोड और कस्टमर केयर नंबर चाहिए? पूरी जानकारी यहां है!
- अपने Airtel Payment Bank का अकाउंट घर बैठे कैसे खोलें? 2024 की पूरी गाइड!
- Airtel Payment Bank स्टेटमेंट डाउनलोड करना हुआ अब और भी आसान! जानें कैसे!
- India Post Payment Bank में घर बैठे खाता कैसे खोलें? यह रहा पूरा प्रोसेस!
- अपने Airtel Payment Bank Current Account से जुड़ी हर जानकारी के लिए क्लिक करें!
- Jio Payment Bank CSP के लिए ऑनलाइन आवेदन कैसे करें? पूरी प्रक्रिया यहां जानें!
- India Post Payment Bank मोबाइल बैंकिंग एक्टिवेट कैसे करें? सबसे आसान तरीका यहाँ!
सिक्कों का पर्यावरणीय प्रभाव
2025 में पर्यावरणीय चिंताएं बढ़ रही हैं, और सिक्कों का निर्माण भी इससे अछूता नहीं है। स्टेनलेस स्टील के खनन और ढलाई में ऊर्जा की खपत और कार्बन उत्सर्जन होता है। कुछ तथ्य:
- धातु खनन: स्टेनलेस स्टील के लिए लोहा और क्रोमियम का खनन पर्यावरण को प्रभावित करता है।
- ऊर्जा खपत: सिक्कों की ढलाई में भारी मशीनों का उपयोग होता है, जो बिजली की खपत बढ़ाता है।
- पुनर्चक्रण: पुराने सिक्कों को पुनर्चक्रित करने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है, लेकिन यह अभी सीमित है।
भारत सरकार और टकसालें 2025 में पर्यावरण-अनुकूल सामग्रियों और प्रक्रियाओं पर ध्यान दे रही हैं, जैसे कि कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीक।
दुर्लभ सिक्कों की कीमत: 2025 में अवसर
क्या आप जानते हैं कि आपके पास पड़ा पुराना एक रुपये का सिक्का आपको करोड़पति बना सकता है? 2025 में दुर्लभ सिक्कों की नीलामी में भारी मांग है। उदाहरण के लिए:
- 1947 का एक रुपये का सिक्का: यदि यह अच्छी स्थिति में है, तो इसकी कीमत लाखों रुपये हो सकती है।
- विशेष डिज़ाइन: कुछ स्मारक सिक्के (जैसे गांधी जी या स्वतंत्रता दिवस के सिक्के) नीलामी में 10 लाख से 10 करोड़ तक बिके हैं।
पुरानी गुल्लक या अलमारी खंगालें; शायद आपके पास भी कोई दुर्लभ सिक्का हो! सिक्कों की कीमत उनकी दुर्लभता, स्थिति, और ऐतिहासिक महत्व पर निर्भर करती है।
सिक्के बनाम डिजिटल मुद्रा: भविष्य क्या है?
2025 में डिजिटल पेमेंट्स (जैसे UPI) और क्रिप्टोकरेंसी की लोकप्रियता बढ़ रही है। फिर सिक्कों का क्या भविष्य है?
- डिजिटल मुद्रा के फायदे: तेज, सस्ता, और पर्यावरण-अनुकूल।
- सिक्कों की प्रासंगिकता: ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे लेन-देन में सिक्के अभी भी महत्वपूर्ण हैं।
- CBDC (Central Bank Digital Currency): RBI ने 2023 में डिजिटल रुपये की शुरुआत की, और 2025 में इसका उपयोग बढ़ रहा है। लेकिन सिक्के पूरी तरह खत्म नहीं होंगे, क्योंकि वे भौतिक मुद्रा का आधार हैं।
यात्रा और अन्य महत्वपूर्ण अपडेट्स
- RailOne Super App के फीचर्स क्या हैं और इसे कैसे डाउनलोड/रजिस्टर करें? जानें सब कुछ!
- क्या आपका नाम कर्ज माफ़ी बैंक लिस्ट लखनऊ, उत्तर प्रदेश में है? अपनी लिस्ट चेक करें!
- Airtel Payment Bank के रिटेलर कैसे बनें? यह मौका न चूकें!
- सुभद्रा योजना के लिए आवेदन कैसे करें और उसका स्टेटस कैसे चेक करें? जानें यहाँ!
निष्कर्ष
एक रुपये का सिक्का भले ही छोटा लगे, लेकिन इसके पीछे लागत, इतिहास, और सांस्कृतिक महत्व की बड़ी कहानी है। अगली बार जब आप एक रुपये का सिक्का देखें, तो सोचिए कि इसके पीछे कितनी मेहनत और खर्च छिपा है!
2025 में, सिक्कों की निर्माण लागत उनके मूल्य से अधिक है, फिर भी ये भारतीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति का हिस्सा बने रहेंगे। दुर्लभ सिक्कों की कीमत और डिजिटल मुद्रा का उदय इस विषय को और रोचक बनाता है। क्या आपके पास कोई पुराना सिक्का है जो लाखों का हो सकता है? अपनी गुल्लक चेक करें और हमें कमेंट में बताएं! इस लेख को शेयर करें और दोस्तों के साथ इस चौंकाने वाली जानकारी साझा करें!
(FAQs)
2025 में एक रुपये का सिक्का बनाने की लागत कितनी है?
2025 में एक रुपये का सिक्का बनाने की अनुमानित लागत 1.20-1.25 रुपये है, जो कच्चे माल की कीमतों पर निर्भर करती है।
भारत में सिक्के कौन बनाता है?
भारत में सिक्के सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (SPMCIL) की टकसालों (मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता, नोएडा) द्वारा बनाए जाते हैं।
सिक्के बनाने में घाटा होने के बावजूद सरकार इन्हें क्यों बनाती है?
सिक्के लंबे समय तक चलते हैं, सांस्कृतिक महत्व रखते हैं, और छोटे लेन-देन के लिए जरूरी होते हैं, इसलिए घाटा होने के बावजूद सरकार इन्हें बनाती है।
नोट छपाई की लागत कितनी है?
उदाहरण के लिए, 500 रुपये का नोट छापने में 2.40-2.60 रुपये और 100 रुपये का नोट छापने में 1.80-2.00 रुपये खर्च होते हैं।
क्या पुराने सिक्के आपको अमीर बना सकते हैं?
हां, कुछ दुर्लभ सिक्के, जैसे 1947 के एक रुपये के सिक्के, नीलामी में लाखों या करोड़ों में बिक सकते हैं, जिससे वे आपको अमीर बना सकते हैं।
सिक्कों का पर्यावरणीय प्रभाव क्या है?
सिक्कों के निर्माण में धातु खनन और ऊर्जा खपत से पर्यावरण प्रभावित होता है, लेकिन इनके पुनर्चक्रण की कोशिशें लगातार जारी हैं।
क्या डिजिटल मुद्रा सिक्कों को खत्म कर देगी?
नहीं, डिजिटल मुद्रा का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन सिक्के छोटे लेन-देन और ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी प्रासंगिक हैं और रहेंगे।