देवीपाटन मंदिर: इतिहास, महत्व, दर्शन समय और कैसे पहुंचें | Maa Pateshwari Devi Temple

देवीपाटन मंदिर, जो उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले के तुलसीपुर में स्थित है, सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह आस्था, इतिहास और आध्यात्मिकता का एक अनूठा संगम है। 51 शक्तिपीठों में से एक होने के कारण, इस मंदिर का विशेष महत्व है, और यहां की हर दीवार, हर पत्थर एक कहानी कहता है। अगर आप भी इस चमत्कारी मंदिर के दर्शन करने की सोच रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए एक पूरी गाइड साबित होगा, जिसमें आपको मंदिर के इतिहास से लेकर यहां तक पहुँचने के तरीके तक, हर ज़रूरी जानकारी मिलेगी।

देवीपाटन मंदिर: इतिहास, महत्व, दर्शन समय और कैसे पहुंचें | Maa Pateshwari Devi Temple

देवीपाटन मंदिर का पौराणिक इतिहास और कथा

देवीपाटन मंदिर का इतिहास युगों पुराना है, जो हिंदू पौराणिक कथाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। पुराणों के अनुसार, माता सती के पिता ने अपने यज्ञ में भगवान शिव को शामिल नही किया जिससे नाराज हो सती ने खुद को उस यज्ञ में भस्म कर लिया, इससे दुखी होकर शिव ने स्राष्टि का विनाश करना शूरु कर दिया जब भगवान शिव सती मां के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खंडित कर दिया। इन खंडों के गिरने की जगहों पर ही शक्तिपीठों का उदय हुआ। देवीपाटन में मां सती का वाम स्कंध (बायां कंधा) सहित पाट (वस्त्र) गिरा था, जिससे इस स्थान का नाम 'देवीपाटन' पड़ा। कुछ मान्यताओं में इसे दाहिना कंधा भी कहा जाता है, लेकिन महत्व एक ही है – आदि शक्ति का अवतरण।

मान्यता है कि इसी स्थान पर माता सती का वाम स्कंध (बायां कंधा) 'पट' समेत गिरा था। 'पट' का अर्थ होता है वस्त्र या कपड़ा। इसी वजह से इस जगह को देवीपाटन (Devipatan) के नाम से जाना जाने लगा, और यहां स्थापित देवी को मां पाटेश्वरी देवी के नाम से पूजा जाने लगा।

योगी गोरखनाथ जी से जुड़ाव

इस पवित्र स्थल की एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी स्थापना भगवान शिव की आज्ञा पर स्वयं महायोगी गुरु गोरखनाथ जी ने की थी। उन्होंने यहाँ लंबे समय तक तपस्या की, जिसकी वजह से यह स्थान एक सिद्ध योगपीठ के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर का संबंध गोरखनाथ संप्रदाय से है, और वर्तमान में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी इसी संप्रदाय से आते हैं।

यहां की स्थापना का श्रेय गुरु गोरखनाथ को जाता है, जिन्होंने भगवान शिव की आज्ञा से इस स्थान पर मठ की नींव रखी। महाभारत काल से जुड़ी एक रोचक कथा भी है – दानवीर कर्ण ने इसी स्थान पर सूर्यकुंड में स्नान कर परशुराम से दिव्य अस्त्रों की शिक्षा ली थी। त्रेता युग की याद दिलाती एक और कथा मां सीता से जुड़ी है। रामायण के अनुसार, लंका विजय के बाद अग्निपरीक्षा के अपमान से व्यथित सीता ने पृथ्वी मां की गोद में समा जाना चुना। मान्यता है कि यही वह स्थान है, जहां से सीता पाताल लोक गईं, और उसी सुरंग पर आज मंदिर खड़ा है।

मंदिर का वर्तमान स्वरूप मौर्य वंश के राजा विक्रमादित्य और बाद में श्रावस्ती के राजा सुहेल देव द्वारा जीर्णोद्धार से समृद्ध हुआ। आज यह न केवल धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत-नेपाल मैत्री का प्रतीक भी। नेपाल के दांग जिले से हर चैत्र नवरात्रि में पीर रतननाथ बाबा की सवारी पदयात्रा कर यहां पहुंचती है, जो सिद्ध महायोगी गोरखनाथ के शिष्य थे।

देवीपाटन मंदिर का धार्मिक महत्व: आस्था और चमत्कार का केंद्र

देवीपाटन मंदिर का महत्व केवल शक्तिपीठ होने तक सीमित नहीं है। यहां मां पाटेश्वरी देवी को जगदंबा के रूप में पूजा जाता है, जो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। देवीपाटन मंदिर की पहचान केवल एक शक्तिपीठ के रूप में ही नहीं है, बल्कि यहां मौजूद कई चमत्कार इसे खास बनाते हैं।

देवीपाटन मंदिर: इतिहास, महत्व, दर्शन समय और कैसे पहुंचें | Maa Pateshwari Devi Temple

  • त्रेता युग की अखंड ज्योति: मंदिर में एक अखंड धुना (धूनी) है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह त्रेता युग से लगातार जल रही है। यह धुना इस स्थान की दिव्यता और प्राचीनता का प्रतीक है।
  • सूर्य कुंड (Surya Kund): मंदिर परिसर में एक प्राचीन कुंड है, जिसे सूर्य कुंड कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत के दानवीर कर्ण ने इसी कुंड में स्नान कर भगवान सूर्य की पूजा की थी। यह भी माना जाता है कि इस कुंड में स्नान करने से चर्म रोग और कुष्ठ रोग ठीक हो जाते हैं। यहां मुंडन संस्कार की विशेष मान्यता है – ग्रामीण परिवार अपने बच्चों का पहला मुंडन मां के चरणों में करवाते हैं, क्योंकि यह पुण्य कार्य संतान की लंबी आयु और सुख सुनिश्चित करता है।
  • पातालगमन सुरंग: मंदिर के गर्भगृह में एक सुरंग है, जिसे लेकर एक और मान्यता जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि रामायण काल में माता सीता लोक-अपवाद से दुखी होकर इसी स्थान पर धरती में समा गई थीं। इस सुरंग को अब एक चांदी के चबूतरे से ढका गया है।
  • पूजा की विधि भी अनोखी है। मुख्य पुजारी गुप्त पूजा के बाद ही मंदिर के द्वार खोलते हैं। प्रसाद चढ़ाने से पहले पशु-पक्षियों को भोग लगाया जाता है, जो ईश्वर के कण-कण में वास की भावना को दर्शाता है। नवरात्रि में विशेष अनुष्ठान होते हैं, जहां वैदिक ब्राह्मण विश्व कल्याण के लिए हवन करते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो गोरखनाथ संप्रदाय से जुड़े हैं, अक्सर यहां दर्शन के लिए आते हैं, जो मंदिर की राजकीय महत्व को रेखांकित करता है।

यदि आप tulsipur devipatan mandir की तलाश में हैं, तो यह स्थान न केवल आस्था का, बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। यहां आने वाले भक्त बताते हैं कि मां की कृपा से जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

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देवीपाटन मंदिर दर्शन समय: 2025 में विशेष व्यवस्था

देवीपाटन मंदिर के दर्शन के लिए कोई सख्त समय सीमा नहीं है, लेकिन सुबह के घंटे सबसे शांत और आध्यात्मिक होते हैं। सामान्य दिनों में मंदिर सुबह 5 बजे से रात 9 बजे तक खुला रहता है। नवरात्रि जैसे विशेष अवसरों पर समय बढ़ जाता है।

नीचे 2025 के लिए अनुमानित दर्शन समय की तालिका दी गई है (मंदिर प्रशासन के अनुसार, बदलाव संभव):

अवसर

दर्शन समय (सुबह)

दर्शन समय (शाम)

विशेष नोट्स

सामान्य दिन

5:00 AM - 12:00 PM

4:00 PM - 9:00 PM

गुप्त पूजा के बाद द्वार खुलते हैं

शारदीय/चैत्र नवरात्रि

4:00 AM - 2:00 PM

3:00 PM - 10:00 PM

भीड़ अधिक, VIP दर्शन उपलब्ध (शुल्क आधारित)

अन्य त्योहार (जैसे रामनवमी)

5:00 AM - 1:00 PM

4:00 PM - 9:00 PM

अतिरिक्त सुरक्षा और पार्किंग

devi patan temple timings जानने के लिए मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट या स्थानीय हेल्पलाइन चेक करें। नवरात्रि 2025 में (22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक) विशेष सुरक्षा और सीसीटीवी व्यवस्था रहेगी, जैसा कि हाल के समाचारों में उल्लेखित है।

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देवीपाटन मंदिर कैसे पहुंचें: आसान यात्रा मार्ग

देवीपाटन मंदिर देवीपाटन मंडल के केंद्र में स्थित है, जो बलरामपुर जिले के तुलसीपुर तहसील में है। यह नेपाल सीमा से मात्र 20 किमी दूर है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए भी सुविधाजनक।

  • हवाई मार्ग से: निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ का चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र है, जो मंदिर से लगभग 160 किमी दूर। लखनऊ से टैक्सी या बस से 3-4 घंटे लगते हैं।
  • रेल मार्ग से: तुलसीपुर रेलवे स्टेशन सबसे निकट (मंदिर से 2 किमी)। गोंडा जंक्शन (25 किमी) से ट्रेनें उपलब्ध। दिल्ली, मुंबई या कोलकाता से सीधी ट्रेनें गोंडा पहुंचती हैं।
  • सड़क मार्ग से: बलरामपुर से 25 किमी की दूरी। NH-927 से जुड़ा। लखनऊ से 160 किमी, गोंडा से 35 किमी। बसें और टैक्सी आसानी से मिलती हैं।
देवीपाटन मंदिर: इतिहास, महत्व, दर्शन समय और कैसे पहुंचें | Maa Pateshwari Devi Temple

devipatan mandir kahan hai पूछने वाले भक्तों के लिए: GPS निर्देशांक 27.5333° N, 82.5833° E। पार्किंग और यात्री निवास की सुविधा उपलब्ध। यदि आप devipatan mandir distance from Lucknow जानना चाहें, तो Google Maps से रीयल-टाइम अपडेट लें।

मंदिर परिसर की विशेषताएं: क्या-क्या देखें

मंदिर परिसर विशाल है, जहां कई आकर्षण हैं:

  • सूर्यकुंड: पवित्र स्नान के लिए आदर्श, जहां कर्ण की स्मृति बसी है।
  • अखंड ज्योति: त्रेता युग से जल रही, भक्तों के लिए ध्यान केंद्र।
  • काल भैरव मंदिर: सुरक्षा के देवता का छोटा लेकिन शक्तिशाली मंदिर।
  • प्राचीन बरगद का पेड़: 500 वर्ष पुराना, जहां चुड़ैलें बंधी मिलेंगी।
  • समय माता मंदिर: मां काली का स्वरूप, पूर्वी यूपी की परंपरा का प्रतीक।

devipatan temple photos के लिए मंदिर परिसर में फोटोग्राफी अनुमत है, लेकिन गर्भगृह में नहीं। आसपास नेपाल बॉर्डर पर घूमना भी रोमांचक है – इंडो-नेपाल फ्रेंडशिप गेट देखें।

नवरात्रि 2025 में देवीपाटन मंदिर: उत्सव और मेले की धूम

शारदीय नवरात्रि 2025 (22 सितंबर से शुरू) में देवीपाटन मंदिर में 15 दिवसीय राजकीय मेला आयोजित होगा। लाखों श्रद्धालु सूर्यकुंड स्नान कर मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन करेंगे। इस बार 8 सेक्टरों में बंटा परिसर, 1200 पुलिसकर्मी और स्वास्थ्य शिविरों की व्यवस्था होगी। चैत्र नवरात्रि में नेपाल से आने वाली सवारी विशेष आकर्षण रहेगी।

मेले में झूले, प्रसाद स्टॉल और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। devipatan mandir history में वर्णित वैदिक अनुष्ठान अष्टमी तक चलेंगे। यदि आप नवरात्रि में जा रहे हैं, तो अग्रिम बुकिंग कराएं।

देवीपाटन मंदिर बनाम पाटन देवी मंदिर: क्या है अंतर?

अक्सर लोग देवीपाटन मंदिर और पाटन देवी मंदिर को लेकर भ्रमित हो जाते हैं, क्योंकि दोनों के नाम में समानता है। हालांकि, ये दोनों मंदिर पूरी तरह से अलग हैं और इनका अपना-अपना महत्व है।

विशेषता

देवीपाटन मंदिर (Devipatan Mandir)

बड़ी पाटन देवी मंदिर (Patan Devi Mandir)

स्थान

तुलसीपुर, बलरामपुर, उत्तर प्रदेश

पटना, बिहार

शक्तिपीठ

51 शक्तिपीठों में से एक (यहां सती का बायां कंधा गिरा था)

51 शक्तिपीठों में से एक (यहां सती की दाहिनी जांघ गिरी थी)

महत्व

गुरु गोरखनाथ जी से संबंधित योगपीठ

पटना शहर की अधिष्ठात्री देवी

यह स्पष्ट है कि ये दोनों ही मंदिर भारत के महत्वपूर्ण शक्तिपीठ हैं, लेकिन इनका स्थान और पौराणिक महत्व अलग-अलग है।

(FAQ)

devipatan mandir kahan hai? – बलरामपुर जिले के तुलसीपुर में, नेपाल सीमा के पास।

devipatan mandir distance from Lucknow कितनी है? – लगभग 160 किमी, 3-4 घंटे का सफर।

devipatan mandir history में क्या खास है? – सती का स्कंध गिरने और गोरखनाथ की स्थापना।

balrampur to devipatan mandir distance? – 25 किमी, आसान बस यात्रा।

देवीपाटन मंडल (Devipatan Division) में कौन से जिले आते हैं?

इसमें गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती और बलरामपुर जिले आते हैं।

देवीपाटन मंदिर की क्या खास बात है?

यह 51 शक्तिपीठों में से एक है, यहां त्रेता युग से अखंड ज्योति जल रही है, और यह गोरखनाथ जी से जुड़ा एक सिद्ध योगपीठ है।

क्या देवीपाटन मंदिर की फोटो (Devipatan Mandir Photo) उपलब्ध हैं?

हाँ, मंदिर परिसर के भीतर और बाहर कई मनमोहक तस्वीरें उपलब्ध हैं।

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निष्कर्ष:

देवीपाटन मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था, इतिहास और संस्कृति का संगम है। यहां आकर हर भक्त महसूस करता है कि मां पाटेश्वरी हर कष्ट हर लेती हैं। यदि आप devipatan mandir tulsipur की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो जल्दी करें – खासकर इस नवरात्रि में। देवीपाटन मंदिर सिर्फ एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो आपको आध्यात्मिकता के करीब लाता है। इसका समृद्ध इतिहास, पौराणिक कथाएं और प्राकृतिक सुंदरता हर यात्री को मंत्रमुग्ध कर देती है। अगर आप भी देवी मां की कृपा पाना चाहते हैं, तो तुलसीपुर देवीपाटन मंदिर की यात्रा की योजना ज़रूर बनाएं। जय माता दी! अपनी यात्रा अनुभव कमेंट में साझा करें।

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